“जाने सिंघाड़ा की पूरी खेती की जानकारी”-
सिंघाड़ा जिसे अंग्रेजी में वाटर चेस्टनट भी कहते हैं। भारत में उगाई जाने वाली कुछ महत्वपूर्ण फलदार फसलों में एक है यह मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में उगाया जाने वाला एक जलीय पौधा है यह नदी तालाब और धाराओं के पोषक तत्वों से समृद्ध होता है किसान भाई इसका उत्पादन अपने तालाब में भी कर सकते हैं इसकी जड़े तालाब के निचले सतह पर धंसी रहती हैं और पत्तियों के मध्य भाग में वायु भरी रहती है जिससे में पानी की सतह पर तैरती रहती है सिंघाड़े का फल व बीज एक हल्के मीठे स्वाद के साथ त्रिभुज , सफेद और मोटी आवरण युक्त छिलके का बना होता है इन छिलकों को निकालने के लिए सिंघाड़ा को उबाल लेते हैं सिंघाड़े के कच्चे ताजे फलों का उपयोग मुख्य रूप से फलों के रूप में किया जाता है इसके अलावा पके फल को सुखाकर उसकी रोटी से आटा भी तैयार किया जाता है कई धार्मिक त्योहारों में इसके फल व आटे से बने रोटी का प्रयोग उपवास में किया जाता है क्योंकि इसके आटे को अनाज नहीं माना जाता है सिंघाड़े में पोषक तत्व जैसे प्रोटीन 20% तक स्टार्च 2% तक टेनिस 9.4% तक वसा 1% शुगर 5% तक आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं साथ ही साथ खनिज तत्व जैसे फाइबर कैल्शियम पोटेशियम आयरन व जिंक तथा विटामिन बी का भी अच्छा स्त्रोत है जो कि हमारे सेहत के लिए लाभकारी है।
सिंघाड़ा हमारे स्वास्थ्य के लिए निम्न प्रकार से लाभकारी है:-
● यह थायराइड के उचित कामकाज को बनाए रखता है क्योंकि इसमें आयोडीन और मैग्नीज जैसे उपयोगी खनिज तत्व होते हैं।
● पानी के साथ इसके पाउडर का मिश्रण खासी में बड़ी राहत देता है।
● यह Nausea (जी मचलना) में राहत देती है।
● यह सूजन में राहत देती है और रक्त को साफ करती है।
● यह एंटीऑक्सीडेंट से समृद्ध होता है और इसलिए जीवाणुरोधी, एंटीवायरल, एंटीकैंसर और एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं।
● इसका बीज शरीर को डीटॉक्सिफाई करता है।
● फल का उपयोग एनीमिया, फ्रैक्चर, मूत्र संबंधी विकार, ब्रोंकाइटिस और कुष्ठ रोगों के इलाज में किया जाता है।
● यह ऊर्जा का अच्छा स्त्रोत है।
सिंघाड़े की प्रजातियां:- सिंघाड़े की दो प्रकार के प्रचलित प्रजातियां पाई जाती हैं -हरे छिलके वाली व लाल छिलके वाली ,भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान में सिंघाड़े पर भी शोध कार्य आरंभ किया है यहां लाल (v.r.w.c. 1और 2) तथा हरे (v.r.w.c. 3) दोनों प्रकार के संग्रहण हैं इनके अलावा मानपुरी, जौनपुरी ,देसी बड़े, देसी छोटे ,लाल चिकनी गुलरी , कठुआ गुजरा , गपाचा आदि भी प्रसिद्ध किस्में है।
सिंघाड़े की उपज हेतु जलवायु एवं भूमि का चयन:- यह एक जलीय पौधा है इसलिए इसे मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती किंतु जिस खेत या तालाब में इसे उगाई जा रही है उसमें आसपास उर्वरता होना फसल हेतु लाभकारी है किसान या फसल अपने खेतों में भी उगा सकते हैं इसके लिए ऐसे खेत का चयन करना होगा जहां कम से कम 2 से 3 फीट पानी हमेशा भरा रहे एवं इस क्षेत्र में ह्यूमस की अच्छी मात्रा होनी चाहिए। दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वाधिक उपयोगी है मिट्टी का पीएच 6 से 7.5 तक होना अधिक उपयुक्त है जल का तापमान 12 से 15 डिग्री सेल्सियस होना आवश्यक है जब फल अंकुरित होने लगे तब वातावरण का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए य शीत ऋतु में उगाई जाने वाली फसल है।
सिंघाड़े की रोपाई व प्रक्रिया के दिशा निर्देश:-
● इसके रोपाई हेतु बेल या नर्सरी निर्माण बीज के द्वारा ही किया जाता है।
● नर्सरी निर्माण हेतु दूसरी तुडाई के स्वस्थ पके फल का चयन करें।
● जनवरी माह में इसे पानी में डुबो दें ताकि अंकुरण हो सके।
● अंकुरण से पहले फरवरी माह के दूसरे सप्ताह में इसे गहरे पानी या तालाब में डालें।
● मार्च माह में बेल निकलने लगती है।
● अब अप्रैल से जून महीने में नर्सरी हेतु तालाब या खेत तैयार किया जाता है।
● इसके लिए प्रति हेक्टेयर 300 किलोग्राम सुपर फास्फेट, 60 किलोग्राम पोटाश ,व 20 किलोग्राम यूरिया तालाब में डालें व कीट तथा रोगों के रोकथाम हेतु कीटनाशक व कवकनाशी का प्रयोग करें।
● नर्सरी पूर्ण रूप से तैयार हो जाने पर इस की रोपाई शुरू करें इसके लिए जुलाई के प्रथम सप्ताह में कीचड़ तैयार कर ले।
● रोपाई के समय 108 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर, 37.5 kg/h मैग्नीशियम,6.9 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कैल्शियम डालें.। साथ ही साथ गोबर की सड़ी खाद का प्रयोग खेत में अवश्य करें।
●रोपाई से पूर्व इमीडाक्लोराइड 17.8 प्रतिशत s.l के घोल में डुबोकर उपचारित करना ना भूलें।
● अब बोलो को अंगूठे के सहारे निश्चित दूरी पर कीचड़ में धंसा दें।
●रोपाई का कार्य जुलाई से 15 अगस्त के बीच किया जाता है।
●समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण पर ध्यान दें।
● कीट और रोगों पर लगातार निगरानी रखें जरूरत पड़ने पर उचित दवा करें।
फसल की तुड़ाई व उपज:-
सिंघाड़े की कई प्रजातियां में ज्यादातर प्रजातियो की प्रथम तूड़ाई अक्टूबर से अंतिम दिसंबर तक चलती है देर से पकने वाली प्रजातियों की प्रथम तोड़ाई नवंबर से जनवरी तक होती है तोड़ाई पूर्ण रूप से पके फलों का करना चाहिए इसका उपज 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर जिसकी कुल लागत लगभग 40 से ₹45000 होती है जबकि आमदनी लगभग ₹100000 प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है।