सतावर या शतावरी एक औषधीय फसल है, सतावर एक ऐसा पौधा है जिसका उपयोग कई प्रकार की दवाइयों को बनाए के लिए किया जाता है सतावर औषिधीय पौधों की अंतर्गत आता है जिससे इस पौधे की मांग तो बड़ी ही साथ ही इसकी कीमत में भी वृद्धि हुई है | अतः किसान भाइयों के लिए कम लागत पर ज्यादा मुनाफा दिलाने वाला फसल का एक अच्छा विकल्प है | सतावर को शतावरी एवं वहुसुत्ता के नाम से भी जाना जाता है | भारत के आलावा सतावर की खेती नेपाल, चीन, बंगलादेश, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है | मुख्य रूप से सतावर का उपयोग औषधि बनाने में किया जाता है |
सतावर की औषधीय के उपयोग और लाभ – benefits of shatavari (Asparagus) in hindi
- सतावर की औषधी का उपयोग माताओं एवं पशु के स्तन में दुग्ध बढ़ाने में काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है |
- सतावर का उपयोग अनिद्रा दूर करने में भी किया जाता है | साथ ही यह शांति प्रदान करता है जिससे मानसिक रोग में भी इसका उपयोग होता है।
- सतावर का उपयोग यौनशक्ति व काम वासना बढ़ाने के लिए भी किया जाता है।
- सतावर की औषधी का सेवन भुख बढ़ाने एवं पाचन सुधारने में भी किया जाता है |
- सतावर का उपयोग शहद और पीपल के साथ करने पर गर्भाशय का दर्द भी दूर होता है |
- सतावर का प्रयोग शारीरिक दर्दों के उपचार जैसे – सरदर्द, घुटने एवं हाथों का दर्द, पेट का दर्द, पेशाब और मूत्र संस्थान से संबंधित रोग, पैर के तलवों का जलन ठीक करने में, इसके अलावा अर्धपाक्षाघात,गर्दन का अकड़न (स्टिफनेस) ठीक करने के लिए और पाक्षाघात, जैसे अनेक बीमारियों के निवारण में इसका उपयोग किया जाता है |
- सतावर को अनेक प्रकार के बुखार जैसे – टायफाइड, पीलिया, मलेरिया, और स्नायु तंत्र (Nervous System) से जुड़ी बीमारियों के उपचार में किया जाता है |
- ल्यूकोरिया के इलाज के लिए सतावर की जड़ो को गाय के दूध के साथ उबालकर पिने में काफी लाभ होता है |
- सतावर को चर्म रोग जैसे – कुष्ठ रोग, त्वचा का सूखापन, के उपचार में भी उपयोग किया जाता है |
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सतावर की नर्सरी कैसे करें nursery of asparagus
जिस खेत में सतावर की नर्सरी तैयार करनी है, सर्वप्रथम उस खेत की अच्छी तरह से जुताई कर ले ताकि घास और दुसरे फसलों के अवशेष भूमि में दबकर सड़ – गल जायें | खेत की 3 – 4 जुताई कर ले ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए और उसमे ढ़ेले न रहे, अंतिम जुताई से पहले आप खेत में गोबर खाद डालकर जुताई करवाये ताकि वह खाद आची तरह से मिट्टी में मिल जाए , सतावर का बीजो का अंकुरण 60 – 70 फीसदी होता है | अतः 12 किलोग्राम सतावर के बीज आपको 1 हेक्टेयर के लिए लगेंगे | सतावर की क्यारी बनाने के लिए आप 1 मीटर चौड़ी तथा 10 मीटर लम्बी क्यारी बनाकर उसमे से कंकड़-पत्थर निकाल ले ,
बीजो को क्यारी में 15 सें मी की निचे बोकर ऊपर हलकी मिट्टी से ढक दे | और बुवाई के तुरंत बाद ही सतावर की नर्सरी में सिंचाई कर दे यह आवश्यक होता है | और बुवाई के लगभग 25 – 30 दिनों के अन्दर बीजों का अंकुरण होने लगता है | और आप 2 महीने के बाद आप सतावर के पौधो की रोपाई कर सकते है | सतावर की रोपाई के समय हमे उन पोधों को ही चुनना चाहिए जिसमे छोटी – छोटी जड़े हों और सतावर में प्रति हेक्टेयर लगभग 27.500 लगानी चाहिए |
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सतावर पौधा लगाने का तरीका – asparagus racemosus plantation in hindi
सतावर के पोधों की रोपाई के लिए क्यारियों में मोटी मेड या नाली बना ले जिसकी गहराई 40 से.मी. और चौड़ाई 45 – 60 से.मी. हो | इसे बनाकर पोधों को मेड के ऊपर सामान दुरी पर लगावे, और पानी नालियों में दे| सतावर के पोधों रोपते समय ध्यान दे की एक पोधे से दुसरे पोधे की दुरी लगभग 45 से.मी. हो और एक पंक्ति से दुसरे पंक्ति की दुरी 120 से. मी. से 150 से. मी. होना चाहिए | सतावर के पोधों को मेड़ो में लगाने से ये पौधे ज्यादा तेजी से वृद्धि करते है और मेड़ो पर पौधों को 15 से.मी. की गहराई तक लगाना चाहिए
सतावर के जड़ो की खुदाई एवं उपज की प्राप्ति – Yield of asparagus in hindi
सतावर की फसल 24 से 40 माह में हो जाती है | इसके बाद हम जड़ों की खुदार्इ कर सकते है लेकिन सतावर की फसल के लिए सबसे सही समय अप्रैल से मर्इ महीने को माना जाता है | क्योंकि जाड़े के दिनों के बाद जब पत्तियाँ झड़ जाती है | और तब तक पौधों पर लगे हुए बीज भी पक जाते है | सतावर की जड़ो को हम कुदाली की सहायता से सावधानी पूर्वक खोद लिया जाता है | खुदाई से पहले यदि सतावर की खेत में हल्का सिंचाई कर दे तो भूमि नम हो जाता है | जिससे सतावर की फसल को उखाड़ने में आसानी होती है | सतावर की जड़ों के ऊपर वाला छिलका जहरीला होता है इसलिए इसे ट्यूबर्स से अलग कर लिया जाता है। साथ ही सतावर की जड़ को हल्की धूप में सुखाना चाहिए |
सतावर की खेती में लगने वाला व्यय एवं उससे होने वाली आमदनी
सतावर की खेती में आय-व्यय का लेखा-जोखा खेती पर होने वाले व्यय (प्रति हेक्टेयर) | ||
क्रमांक | खेती पर होने वाले व्यय के विभिन्न मद | व्यय (रुपए में) |
1. | पौधशाला की तैयारी तथा मृदा का उपचार | 5000 |
2. | एक हेक्टेयर के लिए 5 किलो बीज का मूल्य (1000 रुपए किलो की दर से) | 5000 |
3. | बीजोपचार पर व्यय | 1500 |
4. | भूमि की तैयारी पर व्यय | 7500 |
5. | खाद तथा उर्वरक पर व्यय | 25000 |
6. | पौधशाला से पौधों को उखाड़ना तथा मुख्य खेत में उनकी रोपाई | 46000 |
7. | पौधों को बांस की फट्टियों का सहारा देने पर व्यय | 60,000 |
8. | फसल की निराई-गुड़ाई तथा जड़ों पर मिट्टी चढ़ाने पर व्यय | 15000 |
9. | जड़ों की खुदाई, सफाई, संसाधन तथा भंडारण पर व्यय | 55000
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10. | बीज निकालने पर व्यय | 12000 |
11. | एक हेक्टेयर भूमि का दो वर्ष का लगान | 20,000 |
कुल व्यय | 2,72,000 |
खेती से होने वाली आय (प्रति हेक्टेयर) | ||
क्रमांक | विभिन्न मद | उपज/प्राप्त आय |
1. | संसाधित जड़ों की औसत उपज | 70 क्विंटल |
2. | बीज की उपज | 2 क्विंटल |
3. | संसाधित जड़ों की कीमत (60 रुपए प्रति किलो की दर से) | 4,20,000 रुपए |
4. | बीज की कीमत (500 रुपए प्रति किलो की दर से) | 1,00,000 रुपए |
5. | दो वर्ष की कुल आय | 5,20,000 रूपए |
6. | दो वर्ष की शुद्ध आमदनी (5,20,000—2,62,000) | 3,58,000 रुपए |
7. | शुद्ध आमदनी प्रति वर्ष | 1,59,000 रुपए |
शुद्ध आमदनी की यह रकम उपज तथा बाजार भाव के अनुसार घट-बढ़ सकती है। |