potato farming tips in hindi आलू भारत की प्रमुख फसल है | और भारत में चावल और गेंहू के बाद सबसे ज्यादा आलू का ही उत्पादन किया जाता है | भारत के कई हिस्सों में तो पूरे वर्ष भर आलू की खेती की जाती है | तमिलनाडु और केरल के आलावा पुरे देश में आलू की खेती की जाती है | हमारे देश में आलू की उपज औसतन 153 क्विन्टल प्रति हेक्टेर के हिसाब से होता है जो की और देशो की तुलना में बहुत कम है | आलू की अच्छी पैदावार के लिए हमे अच्छे किस्मों के रोग रहित बीजो का चयन करना बहुत आवश्यक है | इसके अलावा उर्वरकों का प्रयोग, सिचाई की उपलभ्धता और रोग नियंत्रण के उपाय से भी आलू की उपज पर इसका प्रभाव पड़ता है |
आलू के बीजो के प्रकार एवं चयन के सही तरीके
फसल लगाने के लिए किसान भाइयो को किस प्रकार के आलू के बीजो का चुनाव करना चाहिए | ये एक प्रमुख विषय है क्योंकि आलू के बीज का आकार का प्रभाव फसल के उत्पादन पर भी पड़ता है | यदि बड़े आकार वाले बीजो का चयन करे तो पैदावार तो ज्यादा होगी लेकिन इससे हमे बीज की लागत ज्यादा हो जाता है और बीज की कीमत ज्यादा होने पर प्रयाप्त मुनाफा नहीं हो पता | वही कम आकार वाले बीजो का चयन करने पर बीज में लगने वाला लागत तो कम होगा लेकिन इससे रोगाणुयुक्त आलू पैदा होने का खतरा बना रहता है | आमतौर पर देखा गया है की कम आकार वाले बीजो के फसल ज्यादा रोग लगता है |
अतः हमें ज्यादा लाभ के लिए हमे 3 से 3.5 से. मी. आकार वाले या 30 से 40 ग्राम वजन के आलुओं को बीज के रूप में चयन करना चाहिए |
आलू की किस्में जिन्हे भारतीय परिस्थियों के लिए अनुकूल किया गया है | – potato seeds price in india
आलू की किस्मे | उत्पादन में लगने वाला समय | उत्पादन प्रति हेक्टेर | अन्य जानकारियां |
कुफरी चन्द्र मुखी | 80 – 90 दिन में तैयार | 200 – 250 क्विन्टल | |
कुफरी अलंकार | 70 दिन में तैयार | 200 – 250 क्विन्टल | |
कुफरी नवताल G2524 | 75 – 80 दिनों में तैयार | 200 – 250 क्विन्टल | |
कुफरी बहार 3792 E | 90 – 110 दिनों में तैयार | 200 – 250 क्विन्टल | गर्मियों में 100 से 135 दिनों में |
कुफरी ज्योति | 80 – 120 दिन तैयार | 150 – 250 क्विन्टल | |
कुफरी शीत मान | 100 – 130 दिन में तैयार | 250 क्विन्टल | |
कुफरी देवा | 120 – 125 दिन में तैयार | 300 – 400 क्विन्टल | |
कुफरी सिंदूरी | 120 – 140 दिन में तैयार | 300 – 400 क्विन्टल | |
कुफरी बादशाह | 100 – 120 दिन में तैयार | 250 – 275 क्विन्टल | |
कुफरी देवा | 120 – 125 दिन में तैयार | 300 – 400 क्विन्टल | |
कुफरी लवकर | 100 – 120 दिन में तैयार | 300 – 400 क्विन्टल | |
कुफरी लालिमा | 90 – 100 दिन में तैयार | 300 क्विन्टल | इसमें अगेती झुलसा के लिए मध्यम अवरोधी है और कंद गोल और छिलका गुलाबी रंग का होता है |
कुफरी स्वर्ण | 100 – 110 दिन में तैयार | 300 क्विन्टल |
संकर किस्मे के आलू के बीज की जानकारियाँ
आलू की किस्मे | उत्पादन में लगने वाला समय | उत्पादन प्रति हेक्टेर | अन्य जानकारियां |
कुफरी जवाहर JH 222 | 90 – 110 दिनों में तैयार | 250 – 300 क्विन्टल |
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JF 5106 | 75 दिनों में तैयार | 23 – 28 टन | उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रो में उगाने के लिए |
E 4,486 | 135 दिनों की फ़सल | 250 – 300 क्विन्टल | हरियांणा,उत्तर प्रदेश,बिहार पश्चिम बंगाल गुजरात और मध्य प्रदेश में उगाने के लिए उपयोगी |
कुफरी अशोक P 376 J | 75 दिनों की फ़सल | 23 – 28 टन | |
कुफरी संतुलज J 5857 I | 75 दिनों की फ़सल | 23 – 28 टन |
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JEX -166 C | 90 दिन में तैयार | 30 टन |
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आलू बुआई की विधि – potato cultivation method in hindi
- जमीन से 15-20 से.मी. ऊँची मेड़ें बना ले जिसकी दूरी 45-60 से.मी.होनी चाहिए | उसके बाद दोनों तरफ या बिच में 15-20 से.मी. दुरी पर और आलू 7-8 से.मी. गहराई पर खुरपी की सहायता से लगा दे।
- आलू के खेत में उथली नालिया बनाकर जिसकी गहराई 5 – 7 से.मी. हो, उनमे 20-20 से.मी. दुरी पर आलू बीज रखकर दो कतारों के बिच हल चलाकर आलू को दबा देते हैं या फिर नालिया बनाए बिना ही आलू को 5 – 7 से.मी. गहरा बोकर मेड बना देते हैं।
- पहाड़ी क्षेत्रों में आलू की बुवाई 4 मीटर चौड़ी छोटी क्यारियों में लाइने जिसकी दुरी 45 – 60 से.मी. बनाकर करनी चाहिए, और ढलान 8 -10% से ज्यादा नहीं होना चाहिए। लाइनों में आलू बीज को रखकर मिट्टी में दबा देना चाहिए, और उन पर फावड़े की मदद से लगभग 3- 4 इंच या 8 – 10 से.मी मिट्टी चढ़ा देना चाहिए।
- आलू के पौधों की दुरी कम रखने पर पौधों को रौशनी ,पानी और पोषक तत्वों के लिए प्रयाप्त जगह नहीं मिलती जिसके कारण छोटे आकर के आलू पैदा होते है | और अधिक दुरी रखने पर पौधों की संख्या कम हो जाती है जिससे आलू का वजन तो बड़ जाता है | लेकिन प्रति एकड़ के हिसाब से उत्पादन कम हो जाती है | इसलिए पौधों और कतारों की दुरी ऐसी होनी चाहिए जिससे न तो उपज में कमी हो और न ही आलू के वजन में कमी हो | औसतन बीज के लिए कतरो की दुरी 50 से. मी. और पौधों की दुरी 20 – 25 से. मी.का अन्तराल होना चाहिए |
आलू लगाने से पहले किस प्रकार से बीजोपचार करना चाहिए | – potato seed treatment india in hindi
दीमक, ओगरा ,फंफूद एवं जमीन ,जनित बीमारी से बचने के लिए बीज उपचारित करना सही मन जाता है | इससे खेत में आलू की सड़न रुक जाता है | और कंद की अंकुरण क्षमता बढ़ जाता है |
रासायनिक बीजोपचार
Cold Storage से निकामने के बाद आलू के बीजो को फफूंद एवं बैक्टिरिया जनित रोगों से बचने के लिए के लिए फफूंदनाशक दवाओं का प्रयोग किया जाता है | इसके लिए लिए तेल वाला ड्राम, बाल्टी, या प्लास्टिक का बर्तन काम में ले सकते है | इसमें प्रति लीटर पानी में 1 ग्राम इमीडेक्लोप्रिड का घोल बना कर आलू के बीज को 10 – 15 मिनट तक डुबाकर रखे | फिर आलू को घोल से निकाल कर त्रिपाल या खल्ली बोरा पर छायादार स्थान में फैला दें | ताकि आलू की बीज की नमी कम हो जाय। घोल ज्यादा गंदा होने पर या बहुत कम हो जाने पर उस घोल को फेंककर दूसरा घोल तैयार कर ले | ज्यादा उपज प्राप्त करने के लिए 1% यूरिया, और 1% सोडियम बाई कार्बोनेट, के घोल में 5 – 10 मिनट तक डुबोकर भी बीज उपचार कर सकते है |
बीजोपचार का देशी तरीका
पांच देशी गाय के गोमूत्र में बीज को उपचारित करे , इसके बाद 2 से 3 घंटे सूखने के बाद बीज को बुवाई करे, या फिर15 ग्राम हींग को बारीक़ पीसकर 5 लीटर देशी गाय के मट्ठा में मिलाकर बीज को उपचारित करे, और 1 घंटे सूखने के बाद बीज की बुवाई करे |
आलू की बीजो में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग
आलू की फसल में खाद की आवश्कता अधिक होती है, इसके लिए प्रयाप्त मात्रा में रासायनिक और जैविक उर्वरक की आवश्कता होती है |
आलू के खेत में गोबर की खाद 200 क्विंटल और 5 क्विंटल खल्ली प्रति हैक्टेयर के हिसाब से डाला जाता है। साथ ही 150 K.G. नेत्रजन 330 K.G. यूरिया के रूप में प्रति हैक्टेयर की दर से डाला जाता है, यूरिया की आधी मात्रा 165 K.G. रोपनी के समय और बाकी 165 K.G रोपनी के एक महीने बाद मिट्टी चढ़ाने के समय डाला जाता है। 90 K.G. स्फुर और 100 K.G.पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से डाला जाता है।
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