मधुमक्खी पालन एक ऐसा कार्य है जो चौतरफ़ा लाभ पहुंचाने वाला कृषि सम्बंधित व्यवसाय है| आज शहरीकरण के कारण खेती योग्य भूमि की कमी होती जा रही है जिससे किसानो को अपनी लाभ को बढ़ाने के लिए अन्य व्यवसायों पर भी धयान केंद्रित करना पड़ रहा है, इसका सबसे अच्छा विकल्प मधुमक्खी पालन है जो कि मितव्ययी (कम खर्च) तरीके के किसानो को अपनी आय बढ़ाने में मदद करता है | साथ ही साथ जहाँ भी मधुमक्खी पालन का कार्य किया जाता है उसके आस – पास कृषि एवं बागवानी के उत्पादन में वृद्धि होती है | तथा मधुमक्खियाँ वातावरण को शुद्ध रखने में भी कारगार होती है| अन्य लाभों के साथ इसे मुख्य रूप से शहद एवं मोम प्राप्त करने के लिए पाला जाता है | किसान यदि कृषि कार्य के साथ इस व्यवसाय को भी अपनाते है तो वह अपनी आय को और सुदृण कर सकतें हैं तथा इनसे प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोगो को भी रोजगार प्राप्त होता है | तो आईये हम मधुमक्खी पालन, इनके रख-रखाव, लाभ आदि के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं |
मधुमक्खी के परिवार का परिचय एवं इनकी पायी जाने वाली प्रजातियां (Introduction of bee family and its found species in hindi) –
मधुमक्खी एक कीट प्राणी है जो सदैव झुंड रहती है इस झुण्ड की एक रानी होती है 100 से 200 नर मधुमक्खी होतें है | एवं शेष मधुमक्खियां श्रमिक होती हैं|
रानी मधुमक्खी कीटो के झुंड की सबसे प्रमुख मादा होती है यह आकार में बाकी सभी मधुमक्खियों से बड़ी होती है | इसका कार्य मधुमक्खियों की संख्या में वृद्धि करना होता है रानी मधुमक्खी के अंडे देने की क्षमता इसके प्रजाति पर निर्भर करता है| विदेशी प्रजाति की रानी एक दिन में 1500 से 1800 तक अंडे देती है भारतीय प्रजाति में यह संख्या 900 से 1000 है | इनका जीवन काल 2 से 3 वर्ष का होता है |
श्रमिक मधुमक्खी जैसा की नाम से ही स्पष्ट होता है| सारे कार्य इन्ही के द्वारा किया जाता है | यह मधु इक्कठा करने से लेकर, अंडो की देखभाल करना, शत्रुओं से रक्षा करना, पानी एवं परागकण स्रोतो का पता करना आदि सभी कार्य श्रमिक मधुमक्खियों के द्वारा ही किये जातें हैं | इनका जीवनकाल 2 से 3 माह का होता है | यह आकर में सबसे छोटे होतें हैं| इनकी संख्या हजारों में होती है |
नर मधुमक्खी का कार्य केवल रानी मधुमक्खी के साथ सम्भोग करना होता है तथा सम्भोग करने के ठीक बाद ही नर मधुमक्खी की मृत्यु हो जाती है इसके अलावा यह और कोई कार्य नहीं करते | यह आकर में रानी मधुमक्खी से थोड़े छोटे होते हैं |
भारत में पाए जाने वाले मधुमक्खियों की प्रजातियों की जानकारी (Information about species of bees found in India in hindi) –
प्रजाति |
पालने योग्य कीट |
स्वभाव |
शहद (वर्ष में ) |
पाये जाने वाला स्थान |
एपीस इंडिका (भारतीय प्रजाति) | पालने योग्य होता है | प्रकाश पसंद नहीं होता| लकड़ी के डिब्बों में पाला जाता है | 2 से 5 कि.ग्रा. | बंद घरों में,गुफाओं में,छुपी हुई जगहों में |
एपीस मेलिफेरा (इटालियन प्रजाति) | पालने योग्य होता है | यह जल्दी भागते नहीं, पालना आसान होता है | 50 से 60 कि.ग्रा. | यह विदेश लायी गई प्रजाति है |
एपीस फ्लोरिय (लड मक्खी)
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पालने योग्य होता है, किन्तु पाला नहीं जाता | यह सबसे छोटी मधुमक्खी होती है | 200 ग्राम से 2 कि.ग्रा. | झाड़िओं में,छत में कोनो में |
एपीस डोंरसेटा (भौरें,पहाड़ी मक्खी )
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पाला नहीं जाता | यह सबसे खतरनाक होते हैं इनका डंक बहोत तेज होता है | 30 से 40 कि.ग्रा. | बड़ी इमारतों में या बड़ी वृक्षों में |
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मधुमक्खी पालन हेतु उपुक्त सामग्री और मधुमक्खियों के रख-रखाव एवं पालन के तरीके (Appropriate materials for beekeeping and methods of maintaining bees in hindi) –
मधुमक्खी पालने के लिए हमें कुछ सामग्री की आवश्यकता होती है, साथ ही साथ उनके उचित रखरखाव की भी व्यवस्था करनी पड़ती है एवं मौसम के अनुसार इनके बचाव हेतु उचित प्रबंधन की आवश्यकता होती है| मधुमक्खियाँ पहले जंगलो में रहते थे किन्तु वातावरण के प्रतिकूल प्रभाव से इनकी संख्या कम होती गई | कम संख्या के कारण शहद की भी कमी होने लगी जिससे इनके पालने के उपायों का अध्ययन होने लगा | एवं अठ्ठारहवीं शताब्दी के अंत तक इन्हें पाला जाने लगा था | इसके बाद भी इनके उचित रखरखाव के लिए आवश्यक खोज होते रहे | अब यह कृषि कार्य में वैकल्पिक रूप से उपयोग होने वाले मुख्य व्यवसायों में से एक है|
सामग्री जो मधुमक्खी पालन के लिए आवश्यक है (Materials that are needed for beekeeping in hindi) –
- लकड़ी के बने हुए मौन गृह जहाँ मधुमक्खियों को रखा जाता है इसके अंदर लकड़ी में बहोत सारे फ्रेम होतें है जिसमे मधुमक्खी के छत्ते होतें है | 2 फ्रेम की बीच की दुरी 8MM होनी चाहिए |
- मधु निकलने का यंत्र जो ड्रम के जैसा होता है इसके बीच में हैंडल लगा छड होता है जिसमे जाली लगी हुई होती है, इसमें मधुमक्खियों के छत्तों को डालकर घुमाया जाता है जिससे शहद निकलकर ड्रम के सतह पर इकट्टा हो जाता है|
- शहद निकालते समय मधुमक्खियों के काटने से बचने के लिए दस्ताने जो हांथो को ढँक दे,तथा मुखोटा चेहरा ढंकने के लिए |
- मधुमक्खियों के बेकाबू हो जाने पर उन्हें शांत करने लिए धुंआ करने वाला यंत्र यह टिन का बना होता है |
- मौन गृह सभी जगहों से बंद होता है कितुं मधुमक्खियों के निकलने के लिए मौन गृह के सामने की ओर सतह से लगकर एक छोटा रास्ता छोड़ा जाता है जिसमे जाली लगी होती है इसे रानी रोक द्वार भी कहतें है क्योंकि इसमें ऐसी जाली को लगाया जाता है जिससे श्रमिक मधुमक्खी आसानी से निकल जातें है किन्तु रानी नहीं निकल पाती है |
- मधुमक्खियों को पकड़ने के लिए कपडे का थैले का उपयोग होता है इसका एक सिरा बंद होता है एवं दूसरा सिरा रस्सी खीचने पे बंद होता है|
- मधुमक्खियों को बरसात के दिनों में भोजन ढूंढने में कठिनाई होती है ऐसे में कृत्रिम भोजन पात्र का उपयोग किया जाता है | तथा कभी कभी मधुमक्खियों के लिए कृत्रिम मोम के छत्तों का भी उपयोग किया जाता है|
मधुमक्खियों का मौसम के अनुसार रख – रखाव (Bees keeping in mind as per season in Hindi) –
हम पहले ही बता चुकें है की मधुमक्खियों की देखभाल एवं उनका बचाव मौसम के अनुसार किया जाना चाहिये क्योंकि अलग अलग मौसम में मधुमक्खियों पे अलग अलग रोगों एवं शत्रुओं का खतरा बना रहता है, इसलिए प्रत्येक मौसम में इनकी उचित देखभाल आवश्यक है आइये जानते है कि किस मौसम में किस प्रकार के सुरक्षा इंतजाम करने चाहिए
ठण्ड के मौसम में देखरेख – मधुमक्खियों को सर्दी से बचाना आवश्यक होता है ठण्ड में मौसम में अत्यधिक ठण्ड पड़ती है जिसका मधुमक्खियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है इसके मधुमक्खियों के डिब्बो को प्रवेश द्वार को छोड़ कर सभी जगह से ढँक देना चाहिए | तथा डिब्बो से सतह पर भी टाट या बोरी बिछा देनी चाहिए | एवं डिब्बो को ऐसी जगह पर रखना चाहिए, जहाँ धुप पहुँचती हो इससे मधुमक्खियों कार्य करने की क्षमता पर कम प्रभाव पड़ेगा | जिन जगहों पर शीतलहर का प्रकोप होता है वहां यहाँ सुनिश्चित कर लेना चाहिए की प्रयाप्त मात्रा में शहद व पराग है या नहीं |
बसंत में मधुमखियों की देखरेख – यह मौसम मधुमखियों के लिए सबसे अच्छा होता है | इस मौसम में प्रयाप्त मात्रा में पराग उपलब्ध जाता है | ठण्ड से बचाने के लिए जो डिब्बो को ढंका गया था उन्हें खोल देना चाहिए एवं उनकी सफाई कर देनी चाहिए | इस मौसम में ज्यादा देखरेख की आवश्यकता नहीं होती है तथा अन्य मौसम के मुकाबले ज्यादा की प्राप्ति होती है |
गर्मियों के दिनों में देखरेख – मधुमखियाँ गर्मी में ज्यादा देख रेख के आवश्यकता होती है इसके लिए डिब्बो को स्वेत रंग में रंग देना चाहिए | जिससे आन्तरिक तापमान नियंत्रित रहे | तथा मौन गृहों को किसी छायादार जगह पर रखना चाहिए | इसके साथ पानी की भी उचित व्यवस्था करनी चाहिए क्योंकि गर्मी के दिनों में सभी जीवों को पानी की आवश्यकता होती है | एवं यदि आसपास मधुमक्खियों के अनुकूल खेती न हुए हो तो उनके भोजन की भी व्यवस्था करनी चाहिए | भोजन के लिए 50% पानी में 50% चीनी उबल कर दिया जा सकता है |
बरसात के दिनों में देखरेख – बरसात के दिनों में कीटो का खतरा बना रहता है | इसके लिए मधुमाक्खियों की पेटियों को साफ एवं स्वच्छ स्थान पे रखना चाहिए | तथा पेटियों के अन्दर सफाई कर लेनी चाहिए | पुराने छत्तों को बहार निकल देना चाहिए | एवं पेटियों को जमीन से ऊपर स्टैंड के सहारे रखना चाहिए एवं स्टैंड के सतहों को भरे हुए पानी के बर्तनों पे रखना चाहिए जिससे कीड़े – मकोड़े पेटी तक नहीं पहुँच पाएंगे |
मौसम के अनुसार मधुमक्खियों के भोजन (According to the seasoned bees food In Hindi) –
आज कृषि के आधुनिकी कारण के कारण मधुमक्खियों को प्रत्येक मौसम में भोजन एवं पराग की प्राप्ति हो जाती है फिर हम अधिक जानकारी के लिए महीनो के अनुसार मधुमक्खियों के भोजन के कुछ मुख्य स्रोतों को बता रहें है |
माह |
स्रोत |
जनवरी | सरसों के फूल, मटर, राजमा, कुसुम, तोरियाँ, चना, अनार, अमरुद, कटहल, यूकेलिप्टस आदि। |
फरवरी | सरसों के फूल, कुसुम, अमरुद, मटर, राजमा, अनार, कटहल, यूकेलिप्टस, प्याज, धनिया, चना, शीशम आदि। |
मार्च | कुसुम, अरहर, बरसीम, मेथी, सूर्यमुखी, अलसी, मटर, भिन्डी, धनियाँ, आंवला, निम्बू, शीशम, यूकेलिप्टस, नीम इत्यादि। |
अप्रैल | सूरजमुखी, लोकी, जामुन, बरसीम, अरण्डी, रामतिल, भिन्डी, तरबूज, खरबूज, मिर्च, सेम, करेला, नीम, अमलतास आदि। |
मई | तिल, मक्काइमली, तरबूज, सूरजमुखी, करेला, , बरसीम, लोकी, कद्दू, करंज, खरबूज, खीरा, अमलतास आदि। |
जून | तिल, मक्का, सूरजमुखी, बरसीम, तरबूज, खरबूज, खीरा, करेला, लोकी, इमली, कद्दू, बबुल, अर्जुन, अमलतास आदि। |
जुलाई | ज्वार, मक्का, लोकी, बाजरा, करेला, खिरा, भिन्डी, पपीता आदि। |
अगस्त | टमाटर, ज्वार, सियाबिन, बबुल, आंवला, मक्का, कचनार, खिरा, मुंग, धान, भिन्डी, पपीता आदि। |
सितम्बर | बाजारा, सनई, अरहर, सोयाबीन, मुंग, धान, रामतिल, टमाटर, बरबटी, भिन्डी, कचनार, बेर आदि। |
अक्टूबर | कचनार, सनई, अरहर, धान, रामतिल, यूकेलिप्टस, अरण्डी, बेर, बबूल आदि। |
नवम्बर | सरसों के फूल, तोरियां, अमरुद, बेर, मटर, बोटलब्रश आदि। |
दिसम्बर | सरसों, तोरियाँ, राइ, चना, मटर, यूकेलिप्टस, अमरुद आदि। |
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