सोयाबीन की खेती कैसे करे- सोयाबीन की खेती कैसे कि जाती है (soyabean farming in hindi)-

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भारत के विभिन्न क्षेत्रो में सोयाबीन की खेती कि जाती है । भारत मे इसकी खेती मुख्य रूप से मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महारास्ट्र , गुजरात , राजस्थान राज्यो मे कि जाती है। सोयाबीन एक दलहनी एवं तिल्हनी फसल है। शाकाहारी मनुष्यो के लिए इसको मांस कहा जाता है, क्योकि इसमे बहुत अधिक प्रोटीन होता है। इसके दाने मे 38-42% प्रोटीन पाया जाता है, जो अन्य दालो की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। इसके अतिरिक्त इसमे 19•5% वसा व 20•9% कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है।भारत मे सोयाबीन वर्तमान मे एक प्रमुख नकदी फसल के रूप मे स्थान बना लिया है। सोयाबीन की बहू-उपयोगिता के कारण दिनो- दिन इसकी खेती एवं इससे बने उत्पाद बाजार मे लोकप्रिय हो रहा है। सोयाबीन से तेल निकालने के बाद बचे हुये उपजात खली भी जानवरों एवं मुर्गियों के लिए एक उत्तम आहार के रूप मे उपयोग होता है। सोयाबीन सर हलुआ, पूडी , गुजिया, चाट, दही – बडा, दाल , भूजिया, सूप, ब्रेड, ढूध आदी भोज्य पदार्थ तथा वनस्पति तेल, घी, साबुन, ग्लिसरिन, वसा अम्ल, क्रूड सोयाबीन आदी उत्पाद बनाये जाते है। इसकी फसल दलहनी होने के कारण जड़ो मे गन्ठौ के द्वारा वायुमंडल की nitrogen को एकत्रित कर भूमि की उपजाऊ शक्ती बढाती है।

सोयाबीन की खेती के लिए जलवायु कैसी होनी चाहिए-( climate for soyabean farming in hindi)-

सोयाबीन के लिए गरम नम जलवायु की आवश्यकता पड़ती हैं। बीज अंकुरण के लिए 40 डीग्री F, तथा उचित वृद्धि के लिए 75-80 डीग्री F, तापक्रम उपयुक्त रहता है। कम तापक्रम पर फूल कम लगते है।फसल पकते समय अधिक वर्षा हानिकारक है। जड़ो मे पानी नही भरना चाहिए।

सोयाबीन की खेती के लिए भूमि कैसी होनी चाहिए-( soil for soyabean farming in hindi) –

सोयाबीन की खेती विभिन्न प्रकार की भूमियो मे की जा सकती है लेकिन हल्की मृदाए अच्छी समझी जाती है। दोमट, मटियार दोमट और अधिक उर्वरता वाली कपास की काली मिट्टी वास्तव मे आदर्श मित्तिया कही जाती जाती है। भूमि का पी एच मान 6•6 से 7•5 हो तथा मृदाओ मए वर्षा का पानी न भरे, अन्यथा जड़ो का विकास सही नही होगा।

सोयाबीन कि खेती मे खेत की तैयारी कैसे की जाती है -( Field preparation for soyabean farming in hindi)-

गहरी भूमियो मे मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जोताई करके 2-3 बार हैरो चलाना चाहिए। इसके बाद पाटा लगाकर खेत समतल बना लेना चाहिए। खेत थोडा ढालदार होना चाहिए ताकी पानी खेत मे न रुक सके। बोते समय उचित नमी का होना आवश्यक है। इसलिये पलेवा करके बोआई करनी चाहिए।

सोयाबीन कि फसल मे बोआई का समय व ढंग क्या होना चाहिए -( time of sowing and method of soyabean farming in hindi)-

अती शीघ्र बोआई करने पर पौधो की वृद्घि अधिक हो जाती है तथा उपज सीमित हो जाती है ।देर से बोआई करने पर पौधो की वृधि कम हो जाती है इसलिये इसको सही समय पर बोया जाए। सोयाबीन को मई के अन्तिम सप्ताह से मध्य जुन तक तथा जुन के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बोया जाना उचित होता है। सोयाबीन के बीज खरिफ मे 45 सेमी पंक्ति कि दूरी पर तथा बसन्त्कालीँ फसल मए 30 सेमी कि दूरी पर बोया जाए। पौधे से पौधे कि दूरी 4-5 सेमी हो। भावर भूमियो मे पंक्ति मे पंक्ति की दूरी 60 सेमी होनी चाहिए। बोआई छिटकाव विधि से या फिर हल या सीडड्रिल से पंकतियो मे करते है। किसान भाइयो को पंक्तियों मे बोआई करने से ज्यादा लाभ मिलता है।

सोयाबीन कि खेती मे बीज कि दर क्या होनी चाहिए-( Seed rate for soyabean farming in hindi)-

65 से 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बोना चाहिए, जिसका सामान्यतः अंकुरण 85% हो। पौधो की प्रति हेक्टेयर संख्या 0•2 से0•4 मीलियन कि संस्तुति कि गयी है, जो किस्म से किस्म पर निर्भर करती है।

सोयाबीन कि खेती मे कौन कौन से खाद एवं उर्वरक डालने चाहिए-(Manure and fertilizers for soyabean farming in hindi)-

मृदा परिक्षण के आधार पर ही खाद दी जानी चाहिए। दलहनी फसल होने के वजह से nitrogen कि कम आवश्यकता पड़ती है। वैसे 20 -30 kg nitrogen तथा 60-80 kg फास्फोरस तथा 40-60 kg पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देते है। इन उर्वरको कि मात्रा अन्तिम जोताई मे हल के पीछे पीछे 6से 7 सेमी कि गहराई पर डाली जाए। बीज बोने के 30 से 35 दिन बाद सोयाबीन का एक पौधा उखाड़कर देखना चाहिए की जड़ो मे ग्रंथिया पडीं या नही। यदि ग्रंथियाँ न पडी हो तो 30 kg nitrogen प्रति हेक्टेयर की दर से फूल आने के समय प्रयोग करनी चाहिए।

सोयाबीन कि उन्न्त किस्मे कौन कौन सी होती है-( Improved varieties of soyabean)-

सोयाबीन कि प्रमुख किस्मे- शीलाजीत , पूसा 16, पालम सोया, पी के -416, पंजाब-1, है।

छतीसगढ के लिये सोयाबीन कि प्रमुख किस्मे है-बिरसा सोयाबीन-1, इंद्रा सोया 9 ।

सोयाबीन कि फसल मे सिंचाई कब करनी चाहिए-(Irrigation of soyabean)-

सोयाबीन कि खरीफ फसल के लिये सिंचाई की आवश्यकता नही पडती। यदि वर्षा कम हो, तो एक सिंचाई फली भरने कि अवस्था मे की जानी चाहिए। जल निकास की उचित प्रबंध होना चाहिए।

सोयाबीन कि खेती मे खरपतवार प्रबंधन (weed management of soyabean farming)-

खरपतवार कि रोकथाम हेतु दो निराई गूडाई की आवश्यकता पडती है। पहली बोआई के 30 दिन बाद तथा दूसरी 45 दिन बाद कि जाये। रसायनिक विधि द्वारा रोकथाम अच्छी रह्ती है।रसायन बेसालिन 1 kg/ hecteyar की दर से बोआई से पूर्व भूमि मे मिलाना चाहिए।

सोयाबीन के फसल मे लगने वाली बीमारिया एवं कीट तथा उनसे बचाव- (pests and disease and prevention of soyabean)-

सोयाबीन के पौधे मे पीला मोजैक रोग लगता है जिसे सफेद मक्खी फैलाती है। बीज या पौध सडन इस रोग मे अंकुरण के समय पौधा सड जाता है। इसके अलावा Rust disease- इसमे पत्तियो पर धब्बे पड जाते है तथा अन्त मे पत्तियाँ गिर जाती है। इन रोगो से बचाव के लिए रोगग्रसित पौधो को उखाड़ कर फेक देना चाहिए। और बीज बोने से पहले बीजउपचार करना चाहिए। पीला मोजेक रोग से बचाव के लिए metasistox का छिड़काव करना चाहिए।Rust से बचाव के लिए daiethen का छिडकाव करना चाहिए। इसके साथ ही साथ सोयाबीन के पौधे मे फली छेद्क कीट लगते है ये कीट पत्तियो को खाकर नुक्सान पहुचाती है। इससे बचाव के लिए कर्बराइल का छिडकाव करते है। इसके अलावा सोयाबीन के पौधे मए तना छेद्क कीट लगते है जिसकी वजह से तना सुख जाता है तथा पत्तियाँ झुक जाती है। इसकी रोकथाम के लिए थिमेट का छिडकाव बोआई से पूर्व खेत मे मिलाना चाहिए। और सोयाबीन के पौधे मे सफेद मक्खी इसकी पत्तियो का रस चूसकर नष्ट कर देते है। इनसे बचाव के लिये metasistox या मैलथियान का छिडकाव करना चाहिये।

सोयाबीन के फसल मे कटाई कैसे की जाती है-( Harvesting of soyabean farming in hindi)-

जब सारी पत्तियाँ पीली पडकर सुख जाये और जमीन पर गिर जाए और जमीन पर गिर जाएँ तब पौधो को हसिये या दरातो से काटा जाता है। सामान्यतः खरीफ वाली फसल अक्टूबर मे तथा बसन्त वाली फसल मई- जुन मे काटी जाती है।

सोयाबीन कि फसल मे उपज कितनी मिलती है-( How much is the yield in the soyabean crop)-

अच्छी तरह से पैदा कि गयी सोयाबीन कि फसल मे किसान भाइयों को उन्न्त्शील किस्मो की उपज 30-35क़्विंटल / हेक्टेयर (दाना) मिल जाती है।

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