सरसों का botanical name क्या है –
सरसों का वानस्पतिक नाम botanical name -brassica species ब्रैसिका प्रजाति है
भारतीय अर्थवयवस्था में सरसों वर्ग की फसलो का महत्वपूर्ण स्थान है और अपने आहार का मुख्य अंग है अपने देश में इस समय इन फसलो का कुल क्षेत्रफल 4 .3 मिलियन हेक्टेयर है , जिससे 2.4 मिलियन टनउपज मिलती है इस वर्ग के फसलो को भिन्न भिन्न नाम से pukara जाता है इसलिए उनके नाम तथा गुणों में बड़ा मतभेद है सरसों वर्ग में निम्नलिखित फासले प्रमुख है –

1:राई या राया या लाहा या रिची या indian mustard –
2. भूरी सरसों brassica compestris
3. पीली सरसों brassica compestris
4. तोरिया लोहिया या लाही brassica compestris
5. दूआ या तारामीरा eruca sativa
sarso सरसों की खेती के लिए मौसम कैसी होनी चाहिए -climate for mustard farming in hindi –

सरसों वर्ग की फसल विभिन्न जलवायु की दशाओं में उगाई जाती है दूआं की बहुत कमजोर रेतीली भूमियों में जहाँ कम वर्षा होती हो या सिंचाई के साधन न हो पैदा की जाती है जबकि राई को असिंचित तथा सिंचित दोनों ही दशाओ में हल्की एवं भारी भूमियो में उगाया जा सकता है , सरसों के लिए शुष्क एवं ठंडी जलवायु की आवश्यकता पडती है शुष्क खेती जो वर्षा पर आधारित हैउसके लिए उपयुक्त फसल है अधिक वर्षा वाले क्षेत्रो में इसकी खेती अच्छी प्रकार से नही की जा सकती है आमतोर पर 50 सेमी से 70 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए उपयुक्त समझे जाते है बीज के अंकुरण के समय 25 -27 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान रहना चाहिए अधिक तापक्रम प् बीजो का जमाव नही होता है पाले का फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है
सरसों की खेती कहाँ कहाँ की जाती है -सरसों की खेती करने वाले क्षेत्र कौन कौन से है-
विश्व के विभिन्न देशो जैसे – एशिया, अफ्रीका , और यूरोप आदि देशो में सरसों की खेती की जाती है जिसमे चीन , भारत और पाकिस्तान प्रमुख है भारत में विश्व के कुल उत्पादन का लगभग 1/4 भाग पैदा किया जाता है अपने देश में मुख्य रूप से उत्तरप्रदेश , पंजाब , हरियाणा , राजस्थान,मध्यप्रदेश ,बिहार असम, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इसे उगाया जाता है
सरसों की खेती के लिए भूमि कैसी होनी चाहिए-soil selection for mustard farming in hindi-
सरसों की खेती के लिए दोमट मिटटी उपयुक्त रहती है वैसे हर प्रकार की मिटटी में इसकी खेती की जा सकती है
सरसों की खेती के लिए किस्मो का चयन कैसे करे-vairieties for mustard farming –

improved varieties –
हमेशा राष्ट्रीय एवं राज्यस्तर से विकसित उन्नतशील एवं संस्तुत जातियों को ही बोआई के काम में लाया जाए ताकि अच्छी आमदनी हो सके एसा देखा गया है की उन्नत किस्मे पुराणी प्रचलित किस्मो की तुलना में 20-25% अधिक उपज देती है उन्नतशील किस्मे जो आजकल प्रचलित है निम्नलिखित है –
1.सरसों , लाहा , राई , राया या रची –
1.लाहा -101, 2. वरुणा, 3. शेखर , 4. मानक , 5.क्रांति
अन्य किस्मे –
कृष्णा ,पूसा , बोल्ड , चम्बल, शर्मा, बर्डन , दुर्गाम्नी ,प्रकाश , Rh-30,RLM-198, RW-351, BR-23, RL-18. आदि अन्य कई किस्मे है जिनकी उपज क्षमता काफी अधिक है
2.- भूरी सरसों की किस्मे-
- पूसा कल्याणी , 2. बी.एस.-2 ,3. बी.एस.-70, 4. बी.एच.एस.-1
3.पीली सरसों की किस्मे –
1.विनय, 2. टाईप -151
अन्य किस्मे-
1.टाईप-३६, 2. भवानी ,3. PT-303 , 4. ITSA, 5. TL-15, 6. DK-1,7. M-27
सरसों की खेती के लिए भूमि कैसे तैयार करते है -soil preparation for mustard farming in hindi-
असिंचित क्षेत्रो में जहाँ सरसों की खेती खरीफ के खाली पड़े खेतो में की जाती है वहां प्रत्येक अच्छी वर्षा के बाद डिस्क हैरोइंग किया जाये ताकि नमी एकत्रित की जा सके जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाया जाये इस प्रकार 3 – 4 बार जुताइयो में खेत अच्छी तरह हो जायेगा
सरसों की फसल में बोआई का सही समय क्या होता है-time of sowing in mustard farming in hindi-

किसी भी फसल की यदि समय पर बोआई हो जाये तो समझ लेना चाहिए की लगभग 50 % सफलता मिल गयी अच्छी उपज के लिए प्रमाणित एवं उन्नत बीज ही प्रयोग करे विभिन्न राज्यों में इसकी बोआई के अलग अलग समय है आमतोर पर पीली एवं भूरी सरसों को october के प्रथम पखवाड़े में तथा लाहा या राई को october के प्रथम पखवाड़े में बोते है लाही को मध्य सितम्बर तक वर्षा की समाप्ति के तुरंत बाद बोना चाहिए
सरसों की खेती के समय बीज की दर क्या होनी चाहिए एवं बीजो की दूरी क्या होनी चाहिए -seed rate and spacing in musturd farming-
अच्छी फसल के लिए यह आवश्यक है की प्रति हेक्टेयर उचित पौधो की संख्या हो अधिक घनी फसल में पौधो का विकास अच्छा नही होता है यदि फसल घनी हो तो अतिरिक्त कमजोर पौधो को निकल देना चाहिए इस क्रिय को थिनिंग कहते है देश के अलग अलग राज्यों के लिए बीज दर एवं फासला संस्तुत है आमतौर पर 5 – 7 किलोग्राम बीज / हेक्टेयर सरसों वर्ग की सभी फसलो के लिए प्रयोग किया जाता है लाहा, भूरी सरसों तथा पीली सरसों में पंक्ति का फासला 45 सेमी तथा पौधे से पौधा 15 सेमी दूर रखा जाता है जबकि लाही में यह फासला 30 सेमी पंक्ति से पंक्ति तथा 10 सेमी पौधे से पोधे की दूरी होनी चाहिए बोआई से पूर्व सरसों के बीज को कार्बेन्डाजिम या ब्रैसिकोल या कैप्टान की 2 – 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित किया जाये ताकि फसल को जड़ गलन आदी रोगों से बचाया जा सके
सरसों की फसल में कौन कौन से खाद उर्वरक डालने चाहिए -manure and fertilization for mustard farming –
खाद की मात्रा हमेशा मृदा परिक्षण के आधार पर दी जानी चाहिए सरसों वर्ग के फसल में nitrogen का प्रभाव अच्छा देखा गया है सिंचित क्षत्रो में सरसों वर्ग के फसलो जैसे लाहा ,पीली सरसों , एवं भूरी सरसों के लिए 100-120 किलोग्राम nitrogen ,40 किलोग्राम फास्फोरस, 30 – 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए जबकि असिंचित क्षेत्रो में यह मात्र कम कर दी जाती है सुखी खेती में यह मात्रा60 किलोग्राम nitrogen, 20 किलोग्राम फास्फोरिक अम्ल तथा 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर दी जाती है
सरसों की फसल में निराई गुडाई कब करनी चाहिए-interculture in mustard farming-
बोआई के 20 -25 दिन बाद एक बार खुरपी द्वारा निराई कर दी जाये ताकि नमी एकत्रित रह सके आवश्यकता पड़ने पर दूसरी निराई पहली सिंचाई के बाद जब खरपतवार निकल आये तब करनी चाहिए
सरसों की फसल में सिंचाई कब करे , सिंचाई का समय क्या होना चाहिए -irrigation in mustard farming in hindi –
सरसों वर्ग की सभी फसलो में कम पानी की आवश्यकता पडती है आमतौर पर लाहा,पीली सरसों , भूरी सरसों, तथा तोरिया में एक सिंचाई की जाती है लेकिन 2 सिंचाई करने से अधिक उपज मिलती है प्रयोगों द्वारा यह देखा गया है की पहली सिंचाई यदि देर से की जाये, तो शाखाये , फूल एवं फलियाँ अधिक बनती है पहली सिंचाई का सबसे अच्छा समय शाखाये बनने तथा फूल लगने पर बोआई के 25-30 दिन बाद होता है और दूसरी सिंचाई फली बनने की अवस्था में अर्थात फूल डूबने के बाद की जानी चाहिए जाड़ों में यदि वर्षा हो जाये तो फसल को लाभ मिलता है ऐसी दशा में एक सिंचाई कम की जा सकती है सरसों की जल मांग water requirement 40 hectosentimiter होती है
सरसों की फसल में लगने वाले रोगों से फसल की सुरक्षा कैसे की जाती है -plant protection in musturd farming-
सरसों वर्ग की फसलो में फफूंदी रोग लगते है जैसे – झुलसा , सफ़ेद गेरुई, फिल्लौदी इनकी रोकथाम हेतु रोगग्रस्त पौधो को उखाड़ देना चाहिए झुलसा रोग हेतु daiethen m -45 का छिडकाव बोआई के 40-45 दिन बाद 15 दिन के अंतर पर किया जाये इस फसल में मुख्य रूप से माहू होता है बादल छाये हुए मौसम में इसका प्रकोप सबसे अधिक होता है माहू को रोकने के निम्न उपाय है- 1. दिसम्बर के अंत में जब माहू दिखाई दे तब प्रभावित शाखाओ को शुरू से तोड़ दिया जाये
सरसों के फसल की कटाई एवं मड़ाई कैसे की जाती है एवं कब की जाती है– harvesting and threshing of mustard farming in hindi-
सरसों वर्ग की फासले रबी की फासले है जिनकी कटाई मार्च से मध्य अप्रैल तक हो जाती है तोरिया की फसल मध्य नवम्बर से दिसंबर के अंत तक कट जाती है फसल को काटकर सुखा लिया जाता है तथा बाद में बैलो या ट्रैक्टर से मड़ाई कर ली जाती है
सरसों की फसल में उपज कितनी मिलती है-yield of mustard farming-

शुद्ध फसल से 10 – 12 क्विंटल / हेक्टेयर तथा उन्नतशील किस्मो से 18-20 क्विंटल / हेक्टेयर बीज मिलते है
सरसों की सफल खेती के लिए आवश्यक बाते -important points for improved mustard cultivation-
- अच्छे जमाव के लिए भूमि 10 -12% नमी हो
2. फसल की बोआई एवं अकुरण के समय 25 – 26 डिग्री तापमान हो
3. बोआई अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में की जाये
4. बोआई के 20 -25 दिन बाद घने पौधो में से कमजोर पौधो की थिन्निंग कर दी जाये
5. यूरिया 10 किलोग्राम / हेक्टेयर का 2% का घोल बनाकर पत्तियों का छिडकाव किया जाये
6. यदि पानी की सुविधा हो तो 2 सिंचाई की जाये , उनमे से एक बोआई के 25 -30 दिन बाद शाखाये एवं फूल बनने की अवस्था में की जाये तथा दूसरी सिंचाई फलियाँ बनने के समय की जाये
7 . शुष्क खेती में , पौधो के अच्छे जमाव के लिए बीज को कुंड में रिज़र सीडर द्वारा बोया जाये , जो नमी एकत्रित करने में हेल्प करेगा
8 . पौधे संरक्षण के पुरे उपाय किये जाये माहू की रोकथाम हेतू मैलाथियान / पैरामैलाथियाँ/ दैमक्रों का 0.03 % का घोल 800 लीटर पानी में बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव किया जाये यह मालूम है की सरसों की फसल किटो, बिमारीयों तथा सूखे के प्रति संवेदनशील है

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