तुलसी(Sacred basil) की खेती की जानकारी

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तुलसी एक बहुगुणी औषधीय पौधा है। इसे सेक्रेट बेसिल के नाम से भी जाना जाता है। इसकी पत्तियां बैगनी रंग की हल्के रोए से ढकी रहती है, जबकि कुछ किस्में हरे रंग की होती हैं इनका उत्पादन इनकी पत्तियों के तेल (अर्क)हेतु किया जाता है ।यह पौधे वर्षा में उगते हैं एवं शीत ऋतु आने पर पुष्पित होने लगते हैं जो कि 2 से 3 वर्ष तक रहता है तथा इनकी ऊंचाई 1 से 4 फुट तक हो सकती है। हिंदू धर्म में इस पौधे का सांस्कृतिक, धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्व है। इसे पवित्र माना जाता है एवं घर के आंगन में लगाते हैं ऐसी मान्यता है कि इसमें घर में सुख शांति एवं समृद्धि आती है साथ ही साथ सभी धार्मिक व मांगलिक संस्कारों में पूजा हेतु इसका उपयोग किया जाता है। तुलसी का पौधा औषधीय एवं दिव्य गुणों से परिपूर्ण होता है।यह घरेलू नुस्खों के साथ-साथ आयुर्वेद, यूनान, होम्योपैथी व एलोपैथिक सभी प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों में प्रयोग किया जाता है।इसमें विशेष गुणों के कारण यह एंटी ऑक्सीडेंट, रक्त में शर्करा नियंत्रण, ब्रोंकाइटिस, एंटी इंफेक्शन , बुखार खासी सर्दी, सूजन, मूत्र विकार जीवाणुरोधी, त्वचा की समस्या, तंत्रिका विकार, ऐठन, मधुमेह मुंहासे, रक्त परिसंचरण, किडनी विकार, पाचन संबंधी शिकायतों आदि स्वास्थ्य समस्या हेतु लाभकारी है। तुलसी का उपयोग कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में भी किया जाता है इनसे इन इंडस्ट्री में फेस वॉश ,परफ्यूम ,शैंपू आदि बनाए जाते हैं।रसोई घरों में इसका प्रयोग मसालों के रूप में भी किया जाता है।इस प्रकार इस पौधे के गुणों के कारण इसकी मांग अब वैश्विक स्तर पर हो रही है किसान भाई इसके उत्पादन से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं किंतु यह ध्यान में रखें कि उत्पादन से पहले बिक्री हेतु बाजार व उनसे जुड़ी जानकारी पहले इकट्ठा कर ले ताकि उन्हें बिक्री हेतु कोई समस्या का सामना ना करना पड़े।

तुलसी की किस्में:-

इसमें मुख्य प्रजातियां श्री तुलसी या श्यामा तुलसी, वन तुलसी या राम तुलसी, काली तुलसी, जंगली तुलसी, स्वीट फ्रेंच बेसिल या बुवाई तुलसी, कर्पूर तुलसी आदि है।

तुलसी हेतु उपयुक्त मृदा एवं जलवायु:-

यह पौधा कटिबंधीय उष्णकटिबंधीय दोनों तरह की जलवायु में पैदा होती है इसके लिए उपजाऊ, उच्च ऑर्गेनिक एवं अच्छी जल निकासी वाली भूमि जिसका पीएच 4.3 से 7 हो अनुकूल होता है।बलुई दोमट मिट्टी में इसका उत्पादन अच्छा होता है किंतु क्षारीय भूमि उचित नहीं । अंकुरण के लिए फसल हेतु उचित तापक्रम लगभग 20 डिग्री सेल्सियस तथा पौधे की वृद्धि के पश्चात सामान्यता 7 डिग्री सेल्सियस से 27 डिग्री सेल्सियस तक का तापक्रम औसतन ठीक माना जाता है।

तुलसी का पौधा तैयार करना:-

तुलसी की रोपाई या बुवाई सीधे नहीं करनी चाहिए बल्कि सबसे पहले इस की नर्सरी तैयार करनी चाहिए और बाद में रोपाई नर्सरी तैयार करने के लिए जमीन को बुरी बुरी कर ले अब इसमें लगभग 15 से 30 सेंटीमीटर की गहराई बना लें एवं 2 किलोग्राम प्रति स्क्वायर मीटर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद डालें बीजों का अंकुरण 8 से 12 दिनों के भीतर शुरू हो जाएगा एक हेक्टेयर हेतु लगभग 200 से 300 ग्राम बीज पर्याप्त होता है।

तुलसी के पौधों की रोपाई:-

रोपाई हेतु खेतों की अच्छी तरह जुताई कर ले ।अब खेत में सैया बना लें एवं उनकी दूरी 60 सेंटीमीटर तथा पौधों के बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर से 40 सेंटीमीटर तक रखें।बादल एवं हल्की बौछार वाली मौसम इसके लिए सही है किंतु यदि धूप हो तो दोपहर के बाद हमेशा रुपाई करना चाहिए एवं रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई कर दें पहली रोपाई के 1 महीने पश्चात निराई गुड़ाई का कार्य अवश्य करें जो खरपतवार नियंत्रण के लिए आवश्यक है।

तुलसी खेती हेतु उर्वरक:-

 

10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद पहले डालें एवं 70 से 80 किलोग्राम नाइट्रोजन व 40-40 किलोग्राम फास्फोरस तथा पोटाश डालें।पौधे की प्रथम व द्वितीय तूड़ाई के बाद नाइट्रोजन की आधी मात्रा डालना ना भूलें ।पौधों को माइक्रोन्यूट्रिएंट्स भी चाहिए होते हैं ।कोबाल्ट एवं मैग्नीस जिसको क्रमशः कोबाल्ट 50 पीपीएम एवं मैग्नीस 100पीपीएम की दर से डालें।

तुलसी के पौधों में सिंचाई व्यवस्था:-

पौधे जब तक बड़े ना हो जाए उन्हें लगातार पानी की आवश्यकता होती है,ऐसी स्थिति में ड्रिप सिस्टम द्वारा सिंचाई करना सही माना गया है। सामान्य पौधे को 12 से 15 चक्र में सिंचाई की आवश्यकता होती है।

फसल की कटाई:-

पौधारोपण के 10 से 12 सप्ताह के बाद पौधा कटाई हेतु तैयार हो जाती है। तेल हेतु 25 से 30 सेंटीमीटर पौधे की ऊपरी शाक्य भाग की कटाई करनी चाहिए ।जब पौधे में पुष्प दिखने लगे वह पत्ते पीले पढ़ने शुरू होने लगे तब कटाई करनी चाहिए।कटाई के बाद तुलसी के पौधे को 4 से 5 घंटे छोड़ देना चाहिए यदि आसावन करना हो।

तुलसी की उपज:-

किसान भाइयों से अनुरोध है कि वे खेती से पहले मंडी की जानकारी इकट्ठा कर ले ताकि फसल बेचने की समस्या ना हो एवं फसल हेतु अच्छी आमदनी भी मिल सके एक हेक्टेयर तुलसी लगभग 10 हजार किलोग्राम ताजा पत्तियां उत्पादित करती है जिससे लगभग 20 से 25 किलोग्राम तक तेल निकल सकता है।

पौधा सुरक्षा:- तुलसी के पौधे में सहनशीलता का स्तर भी अच्छा होता है कुछ कीट पौधों को नुकसान पहुंचा सकते हैं जिस पर आपको निगरानी रखनी होगी।

● खेतों में यदि कोई बीमार पौधा दिखे तो उसे अन्य पौधा में संक्रमण से बचाने हेतु उखाड़ कर फेंक दें।

● हमेशा प्राकृतिक कीटनाशक का प्रयोग करें।

● ज्यादा नमी व ज्यादा सूखा से हमेशा फसल को बचाएं।

● फसल कटाई के उपकरण को हमेशा नमी से दूर रखें।

●ऑर्गेनिक नियंत्रण पर जोर देना चाहिए जैसे वाटर स्प्रे,हाथों से चुनना आदि।